पाकर आज अगाध अखण्ड -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग हमारे - तीन ताल


पाकर आज अगाध अखण्ड स्वयं रसराज रसार्णवरूप।
महाभावरूपा व्रज-सुन्दरि सुख-सुषमासे हुर्ईं अनूप॥
इसीलिये श्रीकृष्ण सच्चिदानन्द पूर्ण परतम भगवान।
भगवत्ता सब भूल रसिकचूडामणि रस-शेखर रसवान॥
प्रेम-विवश स्वेच्छामय वे कर सहज प्रेम-बन्धन स्वीकार।
करने लगे गोप-सुन्दरियोंका रसमय आदर-सत्कार॥
त्यागपूर्ण रस मधुर देखकर ललचा उठे स्वयं भगवान।
करने लगे स्वयं रस-लोलुप बन वे रस-याञ्चा मतिमान॥
नव-नीरद-नीलाभ श्याम-घन मानो दामिन-दलमें आज।
घन-दामिनि, दामिनि-घन अगणित बीच-बीचमें रहे विराज॥
दिव्य मिलनका उनको करके दुर्लभ दिव्यानन्द प्रदान।
करने लगे स्वयं उस दिव्य रसामृतका शुचि सादर पान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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