पाई जाति तुम्हारे नृप की, जैसे तुम तैसे बोऊ हैं।
कहाँ रहे दुरि जाइ आजु लौं, येई गुन ढँग के सोऊ हैं।।
यह अनुमान कियौ मन मैं हम, एकहिं दिन जनमे दोऊ हैं।
स्याम बनी जोरी नीकी, सुनहु सखी मानत तोऊ हैं।
सूर स्याम जितने रँग काछत, जुवती जन-मन के गोऊ हैं।।1580।।