- श्रीकृष्ण की बात सुनकर युधिष्ठिर अपने भाईयों से पांडव सेना के सेनापति का चयन करने के लिए परामर्श करते हैं तब सभी पांडव अपने अपने विचार रखते हैं। सबकी बात सुनकर युधिष्ठिर श्रीकृष्ण से कहते हैं कि आप सम्पूर्ण जगत के बलाबल को जानते हो अत: श्रीकृष्ण के कहने पर वह धृष्टद्युम्न को सेनापति नियुक्त करते हैं तत्पश्चात् वह अपनी सम्पूर्ण सेना को साथ लेकर कुरुक्षेत्र में प्रवेश करते हैं, जिसका उल्लेख महाभारत उद्योग पर्व में सैन्यनिर्याण पर्व के अंतर्गत अध्याय 151 में निम्न प्रकार हुआ है[1]-
विषय सूची
पांडव सेना का कुरुक्षेत्र को प्रस्थान
वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर नरश्रेष्ठ पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। फिर तो युद्ध के लिये सुसज्ज्ति हो जाओ, सुसज्जित हो जाओ, ऐसा कहते हुए समस्त सैनिक बड़ी उतावली के साथ दौड़-धूप करने लगे। उस समय प्रसन्न चित्त वाले उन वीरों का महान हर्षनाद सब ओर गूँज उठा। सब ओर घोड़े, हाथी और रथों का घोष होने लगा। सभी ओर शंख और दुन्दुभियों की भयानक ध्वनि गूँजने लगी। रथ, पैदल और हाथियों से भरी हुई यह भयंकर सेना उत्ताल तरगों से व्याप्त महासागर के समान क्षुब्ध हो उठी। रण यात्रा के लिये उद्यत हुए पाण्डव और उनके सैनिक सब ओर दौड़ेते, पुकारते और कवच बाँधते दिखायी दिये। उनकी यह विशाल वाहिनी जल से परिपूर्ण गंगा के समान दुर्गम दिखायी देती थी। सेना के आगे-आगे भीमसेन, कवचधारी माद्रीकुमार नकुल-सहदेव, सुभद्राकुमार अभिमन्यु, द्रौपदी के सभी पुत्र, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, प्रभद्रकगण और पाञ्चालदेशीय क्षत्रिय वीर चले। इन सब ने भीमसेन को अपने आगे कर लिया था। तदनन्तर जैसे पूर्णिमा के दिन बढ़ते हुए समुद्र का कोलाहल सुनायी देता है, उसी प्रकार हर्ष और उत्साह में भरकर युद्ध के लिये यात्रा करने वाले उन सैनिकों का महान घोष सब ओर फैलकर मानो स्वर्गलोक तक जा पहुँचा। हर्ष में भरे हुए और कवच आदि से सुसज्जित वे समस्त सैनिक शत्रु-सेना को विदीर्ण करने का उत्साह रखते थे। कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर समस्त सैनिकों के बीच में होकर चले। सामान ढोने वाली गाड़ी, बाजार, डेरे-तम्बू, रथ आदि सवारी, खजाना, यन्त्रचालित अस्त्र और चिकित्सा कुशल वैद्य भी उनके साथ-साथ चले।[1]
राजा युधिष्ठिर ने जो कोई भी सेना सारहीन, कृशकाय अथवा दुर्बल थी, सबको एवं अन्य परिचारकों को उपप्लव्य में एकत्र करके वहाँ से प्रस्थान कर दिया। पाञ्चालराजकुमारी सत्यवादिनी द्रौपदी दास-दासियों से घिरी हुई कुछ दूर तक महाराज के साथ गयी। फिर सभी स्त्रियों के साथ उपप्लव्य नगर में लौट आयी। पाण्डव लोग दुर्ग की रक्षा के लिये आवश्यक स्थावर[2] तथा जंगम [3] उपायों द्वारा स्त्रियों और धन आदि की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था करके बहुत से खेमे और तम्बू आदि साथ लेकर प्रस्थित हुए। राजन! ब्राह्मण लोग चारों ओर से घेरकर पाण्डवों के गुण गाते ओर पाण्डव लोग उन्हें गायों तथा सुवर्ग आदि का दान देते थे। इस प्रकार वे मणिभूषित रथों पर बैठकर यात्रा कर रहे थे। पाँचों भाई केकयराजकुमार, धृष्टकेतु, काशिराज के पुत्र अभिभू, श्रेणिमान, वसुदान और अपराजित वीर शिखण्डी से सब लोग आभूषण और कवच धारण करके हाथों में शस्त्र लिये हर्ष और उल्लास में भरकर राजा युधिष्ठिर को सब ओर से घेरकर उनके साथ-साथ जा रहे थे।
सेना के पिछले आधे भाग में राजा विराट, सोमकवंशी द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, सुधर्मा, कुन्तिभोज और धृष्टद्युम्न के पुत्र जा रहे थे। इनके साथ चालीस हजार रथ, दो लाख घोड़े, चार लाख पैदल और साठ हजार हाथी थे। अनाधृष्टि, चेकितान, धृष्टकेतु तथा सात्यकि- ये सब लोग भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन को घेरकर चल रहे थे। इस प्रकार सेना की व्यूह रचना करके प्रहार करने के लिये उद्यत हुए पाण्डव सैनिक कुरुक्षेत्र में पहुँचकर साँड़ों के समान गर्जन करते हुए दिखायी देने लगे। उन शत्रुदमन वीरों ने कुरुक्षेत्र की सीमा में पहुँचकर अपने-अपने शंख बजाये। इसी प्रकार श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी शंखध्वनि की। बिजली की गड़गड़ाहट के समान पाञ्चजन्य का गम्भीर घोष सुनकर सब ओर फैले हुए समस्त पाण्डव-सैनिक हर्ष से उल्लसित एवं रोमांचित हो उठे। शंख और दुन्दुभियों की ध्वनि से मिला हुआ बेगवान वीरों का सिंहनाद पृथ्वी, आकाश तथा समुद्रों तक फैलकर उस सबको प्रतिध्वनित करने लगा।[4]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 151 श्लोक 37-58
- ↑ परकोटे और खाई आदि
- ↑ पहरेदार सैनिकों की नियुक्ति आदि
- ↑ महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 151 श्लोक 59-71
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| धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
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| धृतराष्ट्र के पास व्यास और गांधारी का आगमन
| संजय का धृतराष्ट्र को कृष्ण की महिमा बताना
| संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कृष्णप्राप्ति एवं तत्त्वज्ञान का साधन बताना
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| धृतराष्ट्र द्वारा भगवद्गुणगान
भगवद्यान पर्व
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| कृष्ण का युधिष्ठिर को युद्ध के लिए प्रोत्साहन देना
| भीमसेन का शांति विषयक प्रस्ताव
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को उत्तेजित करना
| कृष्ण को भीमसेन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा भीमसेन को आश्वासन देना
| अर्जुन का कथन
| कृष्ण का अर्जुन को उत्तर देना
| नकुल का निवेदन
| सहदेव तथा सात्यकि की युद्ध हेतु सम्मति
| द्रौपदी का कृष्ण को अपना दु:ख सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रौपदी को आश्वासन
| कृष्ण का हस्तिनापुर को प्रस्थान
| युधिष्ठिर का कुन्ती एवं कौरवों के लिए संदेश
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| कृष्ण का मार्ग में लोगों द्वारा आदर-सत्कार
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| धृतराष्ट्र का कृष्ण की अगवानी करके उन्हें भेंट देने का विचार
| विदुर का धृतराष्ट्र को कृष्णआज्ञा का पालन करने के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृष्ण के विषय में अपने विचार कहना
| दुर्योधन की कुमन्त्रणा से भीष्म का कुपित होना
| हस्तिनापुर में कृष्ण का स्वागत
| धृतराष्ट्र एवं विदुर के यहाँ कृष्ण का आतिथ्य
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| गरुड़ का गालव से दक्षिण दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से पश्चिम दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ का गालव से उत्तर दिशा का वर्णन करना
| गरुड़ पर सवार गालव का उनके वेग से व्याकुल होना
| गरुड़ और गालव की तपस्विनी शाण्डिली से भेंट
| गरुड़ और गालव का ययाति के यहाँ आगमन
| ययाति द्वारा गालव को अपनी कन्या देना
| हर्यश्व का ययातिकन्या से वसुमना नामक पुत्र उत्पन्न करना
| दिवोदास का ययातिकन्या से प्रतर्दन नामक पुत्र उत्पन्न करना
| उशीनर का ययातिकन्या से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना
| गालव द्वारा ययातिकन्या को विश्वामित्र की सेवा में देना
| ययातिकन्या माधवी का वन में जाकर तपस्या करना
| ययाति का स्वर्ग में सुखभोग तथा मोहवश तेजोहीन होना
| ययाति का स्वर्गलोक से पतन
| ययाति के दौहित्रों तथा गालव द्वारा उन्हें पुन: स्वर्गलोक भेजने का प्रयास
| ययाति का फिर से स्वर्गारोहण
| स्वर्गलोक में ययाति का स्वागत
| नारद द्वारा दुर्योधन को समझाना
| धृतराष्ट्र के अनुरोध से कृष्ण का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म, द्रोण, विदुर और धृतराष्ट्र का दुर्योधन को समझाना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को पुन: समझाना
| दुर्योधन द्वारा पांडवों को राज्य न देने का निश्चय
| कृष्ण का दुर्योधन को फटकारना
| कृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को दुर्योधन आदि को कैद करने की सलाह
| गांधारी का दुर्योधन को समझाना
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन के षड़यंत्र का भंडाफोड़
| धृतराष्ट्र और विदुर का दुर्योधन को पुन: समझाना
| कृष्ण का विश्वरूप
| कृष्ण का कौरवसभा से प्रस्थान
| कुंती का पांडवों के लिये संदेश
| कुंती द्वारा विदुलोपाख्यान का प्रारम्भ
| विदुला का पुत्र को युद्ध हेतु उत्साहित करना
| विदुला और उसके पुत्र का संवाद
| विदुला द्वारा कार्य में सफलता प्राप्ति और शत्रुवशीकरण उपायों का निर्देश
| विदुला के उपदेश से उसके पुत्र का युद्ध हेतु उद्यत होना
| कुंती का संदेश तथा कृष्ण का उनसे विदा लेना
| भीष्म और द्रोण का दुर्योधन को समझाना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को पुन: संधि के लिए समझाना
| कृष्ण का कर्ण को पांडवपक्ष में आने के लिए समझाना
| कर्ण का दुर्योधन के पक्ष में रहने का निश्चित विचार
| कर्ण द्वारा कृष्ण से समरयज्ञ के रूपक का वर्णन
| कृष्ण का कर्ण से पांडवपक्ष की निश्चित विजय का प्रतिपादन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से पांडवों की विजय और कौरवों की पराजय दर्शाने वाले लक्षणों का वर्णन
| कर्ण द्वारा कृष्ण से अपने स्वप्न का वर्णन
| कुंती का कर्ण के पास जाना
| कुंती का कर्ण से पांडवपक्ष में मिल जाने का अनुरोध
| कर्ण की अर्जुन को छोड़कर शेष पांडवों को न मारने की प्रतिज्ञा
| कृष्ण का युधिष्ठिर से कौरवसभा में व्यक्त किये भीष्म के वचन सुनाना
| कृष्ण द्वारा द्रोणाचार्य, विदुर तथा गांधारी के महत्त्वपूर्ण वचनों का वर्णन
| दुर्योधन के प्रति धृतराष्ट्र के युक्तिसंगत वचनों का वर्णन
| कृष्ण का कौरवों के प्रति दण्ड के प्रयोग पर जोर देना
सैन्यनिर्याणपर्व
पांडवपक्ष के सेनापति का चुनाव
| पांडव सेना का कुरुक्षेत्र में प्रवेश
| कुरुक्षेत्र में पांडव सेना का पड़ाव तथा शिविर निर्माण
| दुर्योधन द्वारा सेना को सुसज्जित होने और शिविर निर्माण का आदेश
| कृष्ण का युधिष्ठिर से युद्ध को ही कर्तव्य बताना
| युधिष्ठिर का संताप और अर्जुन द्वारा कृष्ण के वचनों का समर्थन
| दुर्योधन द्वारा सेनाओं का विभाजन और सेनापतियों का अभिषेक
| दुर्योधन द्वारा भीष्म का सेनापति पद पर अभिषेक
| युधिष्ठिर द्वारा अपने सेनापतियों का अभिषेक
| बलराम का पांडव शिविर में आगमन और तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान
| रुक्मी का सहायता हेतु पांडवों और कौरवों के पास आगमन
| धृतराष्ट्र और संजय का संवाद
उलूकदूतागमनपर्व
दुर्योधन का उलूक को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजना
| पांडव शिविर में उलूक द्वारा दुर्योधन का संदेश सुनाना
| पांडवों की ओर से दुर्योधन को उसके संदेश का उत्तर
| पंडवों का संदेश लेकर उलूक का लौटना
| धृष्टद्युम्न द्वारा योद्धाओं की नियुक्ति
रथातिरथसंख्यानपर्व
भीष्म द्वारा कौरव पक्ष के रथियों और अतिरथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथियों का परिचय
| कौरव पक्ष के रथी, महारथी और अतिरथियों का वर्णन
| कर्ण और भीष्म का रोषपूर्वक संवाद
| भीष्म द्वारा पांडव पक्ष के रथी और उनकी महिमा का वर्णन
| पांडव पक्ष के महारथियों का वर्णन तथा विराट और द्रुपद की प्रशंसा
| पांडव पक्ष के रथी, महारथी एवं अतिरथी आदि का वर्णन
| भीष्म का शिखण्डी और पांडवों का वध न करने का कथन
अम्बोपाख्यानपर्व
भीष्म द्वारा काशीराज की कन्याओं का अपहरण
| अम्बा का भीष्म से शाल्वराज के प्रति अनुराग प्रकट करना
| अम्बा का शाल्व द्वारा परित्याग
| अम्बा और शैखावत्य संवाद
| होत्रवाहन तथा अकृतव्रण का आगमन और उनका अम्बा से वार्तालाप
| अकृतव्रण और परशुराम का अम्बा से वार्तालाप
| अम्बा और परशुराम का संवाद तथा अकृतव्रण की सलाह
| परशुराम और भीष्म का रोषपूर्ण वार्तालाप
| परशुराम और भीष्म का युद्ध हेतु कुरुक्षेत्र में उतरना
| परशुराम के साथ भीष्म द्वारा युद्ध प्रारम्भ करना
| परशुराम और भीष्म का घोर युद्ध
| भीष्म और परशुराम का युद्ध
| भीष्म को प्रस्वापनास्त्र की प्राप्ति
| भीष्म तथा परशुराम द्वारा शक्ति और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग
| भीष्म और परशुराम के युद्ध की समाप्ति
| अम्बा की कठोर तपस्या
| अम्बा को महादेव से वरप्राप्ति तथा उसका चिता में प्रवेश
| अम्बा का द्रुपद का यहाँ जन्म और शिखण्डी नामकरण
| शिखण्डी का विवाह और दशार्णराज का कोप
| हिरण्यवर्मा के आक्रमण से द्रुपद का घबराना
| द्रुपद द्वारा नगररक्षा की व्यवस्था और देवाराधन
| शिखण्डिनी का वनगमन और स्थूणाकर्ण यक्ष से प्रार्थना
| शिखण्डी को पुरुषत्व की प्राप्ति
| स्थूणाकर्ण को कुबेर का शाप
| भीष्म का शिखण्डी को न मारने का निश्चय
| भीष्म आदि द्वारा अपनी-अपनी शक्ति का वर्णन
| अर्जुन द्वारा अपने सहायकों और युधिष्ठिर की शक्ति का परिचय देना
| कौरव सेना का रण के लिए प्रस्थान
| पांडव सेना का युद्ध के लिए प्रस्थान
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