पल भर नहीं छोड़ते बनता -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्री कृष्ण के प्रेमोद्गार

Prev.png
तर्ज लावनी - ताल कहरवा


पल भर नहीं छोड़ते बनता मुझसे प्रिये! तुम्हारा संग।
देख-देख नव-नव ललचाता मैं सागर-रस-सुधा-तरंग॥
नित्य चाहता मन मेरा करना अविरत अवगाहन-पान।
तनिक सह नहीं सकता मैं तुमसे पलभर का भी व्यवधान॥
भरता नहीं कभी मन मेरा, बढ़ती ही रहती नित चाह।
नहीं देखता द्वन्द्व एक भी, करता नहीं कभी परवाह॥
तुमसे घुला-मिला रहता मैं हर हालत में हूँ दिन-रैन।
अमिलन का कल्पना-लेश भी कर देता मुझको बेचैन॥
रहो कहीं तुम, कभी किसी भी स्थिति में, कैसे भी प्यारी।
सदा रहूँगा मिला साथ मैं, हो न सकोगी तुम न्यारी॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः