पलक-ओट नहिं होत कन्हाई।
घर गुरुजन बहुतै बिधि त्रासत, लाज करावत लाज न आई।।
दधि-मटुकी सिर लिये ग्वालिनी कान्ह-कान्ह करि डोलै री।
बिबस भई तनु-सुधि न सम्हारै आपु बिकी बिनु मोलै री।।
जोइ-जोइ पूछैं यामैं है कह लेहु लेहु कहि बौलै री।
सूरदास-प्रभु-रस-बस ग्वालिनि बिरह भरी फिरै टोलै री।।1642।।