परी मेरै नैननि ऐसी बानि।
जब लगि मुख निरखत तब लगि, सुख सुंदरता की खानि।।
ये गीधे बीधे न रहत सखि, तजी सबनि की कानि।
सादर श्री मुखचंद बिलोकत, ज्यौ चकोर रति मानि।।
अतिहि अधीर नीर भरि आवत, सहत न दरसन हानि।
कीजै कहा बाँधि कै सोपी, 'सूर' स्याम कै पानि।।2349।।