परम बियोगिनी सब ठाढ़ी।
ज्यौ जलहीन दीन कुमुदिनि बन, रविप्रकास की डाढ़ी।।
जिहि बिधि मीन सलिल तै बिछुरै, तिहि अति गति अकुलानी।
सूखे अधरु न कहि आवै कछु, बचन रहित मुख बानी।।
उन्नत स्वास बिरह बिरहातुर, कमल बदनि कुम्हिलानी।
निंदतिं नैन निमेष छिनहिं छिन, मिलन कठिन जिय जानी।।
बिनु बुधि बल विचित्र कृत सोभित, चलि न सकी पचि हारी।
'सूरदास' प्रभु अवधि लागि नतु, प्रान तजति ब्रजनारी।।4137।।