पपइया रे पिव की बाणि न बोल -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विरहोद्गार


राग सावनी कल्‍याण


पपइया रे पिव की बाणि न बोल ।।टेक।।
सुणि पावेली बिरहणी रे, थारो रालैली आँख मरोड़ ।
चाँच कटाऊँ पपइया रे, ऊपरि कालर लूण ।
पिव मेरा मैं पीव की रे, तू पिव कहै स कूण ।
थारा सबद सुहावणा रे, जो पिव मेला आज ।
चाँच मढाऊँ थारी सोवनी रे, तू मेरे सिरताज ।
प्रीतम कूँ पतियाँ लिखूँ, कउवा तू ले जाइ ।
जाइ प्रीतम जी सूँ यूँ कहै रे, थाँरी बिरहणि धान न खाइ ।
मीराँ दासी ब्‍याकुली रे, पिव पिव करत बिहाइ ।
बेगि मिलो प्रभु अंतरजामी, तुम बिनि रहोही न जाइ ।।84।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाणी = शब्द, बोली। पवेली = पवेगी। थारो = तेरो। रावैली डालेगी मरोड़ = ऐंठकर तोड़। चाँच = चोंच। कालर = कालारे। लूण = नमक। स = सो। कूण = कोना। थारा = तेरे। सबद = शब्द, बोली। मेला = मिलन। मढाऊँ = मढाऊँगी। सोननी = सोने से। सिरताज = आदरणीय। यूँ = यों, इस प्रकार। धान = धान्य, अन्न। रह्यौहि = रहा ही।

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