पढ़ौ भाइ, राम- मुकुंद-मुरारि।
चरन-कमल मन-सनमुख राखो, कहूँ न आवै हारि।
कहै प्रहलाद सुनौ रे बालक, लीजै जनम सुधारि।
को है हिरनकसिप अभिमानी, तुम्है सकै जो मारि।
जनि डरपौ जड़मति काहू सौं भक्ति करौ इकसारि।
राखनहार अहै कोउ औरै , स्याम धरे भुज चारि।
सत्य स्वरूप देव नारायन ,देखौ हृदय विचारि।
सूरदास प्रभु सब मै व्यापक , ज्यौं धरनी मै बारि ।।3।।