न्हात नंद सुधि करी स्याम की, ल्यावहु बोलि कान्ह बलराम।
खेलत बड़ी बार कहुँ लाई, ब्रज-भोतर, काहू कैं धाम।
मेरे संग आइ दोउ बैठैं, उन बिनु भोजन कौने काम।
जसुमति सुनत चली अति आतुर, ब्रज-घर-घर टेरति लै नाम।
आजु अबेर भई कहुँ खेलत, बोलि लेहु हरि कौं कोउ बाम।
ढूँढ़ि फिरि नहिं पावति हरि कौं, अति अकुलानो, तावति धाम।
बार-बार पछिताति जसोदा, बासर बोति गए जुग जाम।
सूर-स्याम कौं कहूँ न पावति, देखे बहु बालक के ठाप।।235।।