नैन भए वोहित के काग -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नैन भए वोहित के काग।
उड़ि उड़ि जात पार नहि पावत, फिरि आवत तिहि लाग।।
ऐसी दसा भई री इनकी, अब लागे पछितान।
मो बरजत बरजत उठि धाए, नहि पायौ अनुमान।।
वह समुद्र ये ओछे बासन, बरै कहाँ सुखरासि।
सुनहु 'सूर' ये चतुर कहावत, वह छवि महा प्रकासि।।2312।।

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