नैन न मेरे हाथ रहे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नैन न मेरे हाथ रहे।
देखत दरस स्यामसुंदर कौ, जल की ढरनि वहे।।
वह नीचे कौ धावत आतुर, वैसेहि नैन भए।
वह तौ जाइ समात उदधि मैं, ये प्रति अंग रए।।
वह अगाध कहुँ वार पार नहि, येउ सोभा नहि पार।
लोचन मिले त्रिवेनी ह्वैकै, 'सूर' समुद्र अपार।।2230।।

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