नैन आपने घर के री।
लूटन देहु स्याम-अँग-सोभा, जो हम पर वे तरके री।।
यह जानी नीकै करि सजनी, नही हमारे डर के री।
वै जानत हम सरि को त्रिभुवन, ऐसे रहत निधरके री।
ऐसी रिस आवति है उनपर, करै उनहिं घर घर के री।
'सूर' स्याम के गर्व भुलाने वै उनपर है ढरके री।।2244।।