नैना मोकौ नही पत्याहिं।
जे लुबधे हरि-रूप-माधुरी, और गनत वे नाहि।।
जिनि दुहि धेनु औटि पय चाख्यौ ते क्यौ निरसे छाकै।
क्यौ मधुकर मधु-कमल-कोस तजि, रुचि मानत है आकै।।
जे पटरस सुख भोग करत है, ते कैसै खरि खात।
'सूर' सुनहु लोचन हरि रस तजि, हम सौ क्यौ तृपितात।।2356।।