नैना मेरे मिलि चले, इंद्री अरु मन संग।
मोको व्याकुल छाँड़ि कै, आपुन करै जु रंग।।
अपनौ नहिं कबहूँ करै, अधमनि के ये काम।
जनम गँवायौ साथही, अब हम भई निकाम।।
धिक जन ऐसे जगत मै, यह कहि कहि पछिताति।
धर्म हृदय जिनकै नही, धिक तिनकी है जाति।।
मनसा वाचा कर्मना, गए विसारि विसारि।
'सूर' सुमिरि गुन नैन के बिलपति है ब्रजनारि।।2318।।