नैना नैननि माँझ समाने।
टारै टरत न इक पल मधुकर ज्यौ, रस मै अरुझाने।।
मन गति पगु भई सुधि बिसरी, प्रेम पराग लुभाने।
मिले परस्पर खंजन मानौ, झगरत निरखि लजाने।।
मन बच क्रम पल ओट न भावत, छिनु छिनु जुग परमाने।
'सूर' स्याम के बस्य भए ये, जिहिं बोतै सो जानै।।2297।।