नैना झगरत आइ कै मोसौं री माई।
खूँट धरत हैं धाइकै, चलि स्याम दुहाई।।
मै चकित ह्वै ठगि रहौ, कछु कहत न आवै।
आपुन जाइ मिले रहै, अब मोहि बुलावै।।
गए दरस जौ देहि वै, तहँ अपनी छाया।
और कछुवै है नही, री उनकी माया।।
कपटिनि कै ढंग ये सखि, लोचन हरि कैसे।
'सूर' भली जोरी बनी, जैसे कौ तैसे।।2364।।