नैननि साध नही सिराइँ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नैननि साध नही सिराइँ।
जदपि निसि दिन संग डोलत, तदपि नाहि अघाइँ।।
पलक नहि कहुँ नैकु लागति, रहति इकटक हेरि।
तऊ कहुँ तृपितात नाही, रूप रस की ढेरि।।
ज्यो अगिनि घृत तृप्ति नाही, तृषा नाहिं बुझाइ।
'सूर' प्रभु अति रूप ढानो, नैन लोभ न जाइ।।2369।।

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