नैननि नींद गई री निसि दिन, पल पल छतियाँ लग्यौ रहै धरकौ।
उत मोहन मुख मुरलि सुनत सखि, सुधि न रही इत घैरा घर कौ।।
ननदी तौ न दिये बिनु गारी रहति, सासु सपनेहु नहि ढरकौ।
माइ निगोड़ी काननि मैं लियै रहै, मेरे पायनि कौ खरकौ।।
निकसन हूँ पैयै नहिं, कासौं दुख कहियै, देखे नहिं हरि कौ।
'सूरदास' के प्रभु तन मेरौ, ज्यौ भयौ हाथ पाथर तर कौ।।1916।।