नैननि निपट कठिनई ठानी।
जा दिन तै बिछुरे नँदनंदन, ता दिन तै नहिं नैकु सिरानी।।
पलक न लावत रहत ध्यान धरि, बारबार दुरावत पानी।
लाल गुपाल मिले ऊधौ, मैं करमहीन कछुवै नहिं जानी।।
समुझि समुझि अनुहार स्याम की, अति सुंदर बर सारगपानी।
'सूरदास' ये मोहि रहे अति, हरि मूरति मन माहँ समानी।।3567।।