नैननि नंदनंदन ध्यान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


 
नैननि नंदनंदन ध्यान।
तहाँ यह उपदेस दीजै, जहाँ निरगुन ज्ञान।।
पानि पल्लव रेख गनि गुन, अवधि विविध विधान।
इते पर इन कटुक वचननि, क्यों रहैं तन प्रान।।
चंद कोटि प्रकास मुख, अवतस कोटिक भान।
कोटि मन्मथ वारि छवि पर, निरखि दीजत दान।।
भृकुटि कोटि कोदंड रुचि, अवलोकनी संधान।
कोटि वारिज बक्र नैन कटाच्छ कोटिक वान।।
मनि कंठ हार, उदार उर, अतिसय बन्यौ निरमान।
संख, चक्र, गदा धरे कर पद्म सुधा निधान।।
स्याम तनु पट पीत की छवि, करै कौन बखान।
मनहु नृत्यत नील घन मैं, तड़ित देती भान।।
रास रसिक गुपाल मिलि, मधु अधर करती पान।
‘सूर’ ऐसे स्याम बिनु, को इहाँ रच्छक प्रान।।3561।।

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