नैननि तै हरि आपुस्वारथी, आजु बात यह जानी।
ये उनको, वै इनकौ चाहत, मिले दूध अरु पानी।।
सुनियत परम उदार स्यामघन, रूप रासि उन माही।
कीजै कहा कृपन की संपति, नैन नही जु पत्याही।।
बिलसत डारत रूप-सुधा-निधि, उनकी कछु न चलावै।
सुनहु 'सूर' हम स्वाति बूँद लौ, रट लागी नहिं पावै।।2331।।