नैकु निकुंज कृपा करि आइयै।
अति रिस कृस ह्वै रही किसोरी, करि मनुहारि मनाइयै।।
कर कपोल अंतर नहिं पावत अति उसास तन ताइयै।
छूटे चिहुर बदन कुम्हिलानौ, सुहथ सँवारि बनाइयै।।
इतनौ कहा गाँठि को लागत, जौ बातनि सुख पाइयै।
रूठेहिं आदर देत सयाने, यहै 'सूर' जस गाइयै।।2570।।