नैंकु रहौ, माखन द्यौं तुमकौं।
ठाढ़ी मथति जननि दधि आतुर, लौनी नंद-सुवन कौं।
मैं बलि जाउँ स्याम-घन सुंदर, भूख लगी तुम्हैं भारी।
बात कहूँ की बूझति स्यामहिं, फेर करत महतारी।
कहत बात हरि कछू न समुझत, झूठहिं भरत हुँकारी।
सूरदास प्रभु कैं गुन तुरतहिं, बिसरी गई नँद-नारी।।167।।