नैंकु न मन तैं टरत कन्‍हाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


नैंकु न मन तैं टरत कन्‍हाई।
इक ऐसैंहि छकि रही स्‍याम-रस, तापर इहिं यह बात सुनाई।।
वाकौं सावधान करि पठयौ, चली आपु जल कौं अतुराई।
मोर मुकुट पीतांबर काछे, देख्‍यौ कुंवर नंद कौ जाई।।
कुंडल झलकत ललित कपोलनि, सुंदर नैन बिसाल सुहाई।
कह्यौ सूर-प्रभु ये ढंग सीखे, ठगत फिरत हौ नारि पराई।।1413।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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