नृप कौ नाउं लेत ताही मुख, जिहिं मुख निंदा काल्हि करी।
आपुन तौ राजनि के राजा, आजु कहा सुधि मनहिं परी।
भले स्याम ऐसी तम कीन्ही, कहा कंस कौ नाउँ लियौ।
जब हम सौंह दिवावन लागीं, तबहिं कंस पर रोष कियौ।।
जाकौं निंदि बंदियै सो पुनि, वह ताकौं बहिुरो निदरै।
सूर सुनी बह बात काल्हि की, तब जानी इन कंस डरै।।1576।।