नृत्यत स्याम स्यामा हेत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


नृत्यत स्याम स्यामा-हेत।
मुकुट-लटकनि, भृकुटि-मटकनि, नारि-मन सुख देत।।
कबहुं चलत सुधंग गति सौं, कबहुं उघटत बैन।
लोल कुंडल गंड-मंडल, चपल, नैननि सैन।।
स्याम की छबि देखि नागरि, रही इकटक जोहि।
सूर-प्रभु उर लाइ लीन्हो, प्रेम-गुन करि पोहि।।1148।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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