नीच मैं मूढ़ दोष की खान -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग भैरवी - तीन ताल


नीच मैं मूढ़ दोष की खान।
बीत रह्यौ नर-जन्म बृथा ही, मानि रह्यौ मतिमान॥
सुत-बित-रमनि-रमन पद-गौरव, जो छनभंग, अनित्य।
फँस्यौ रैन-दिन मन इन बिषयनि, भूलि सत्य सुख नित्य॥
समुझौं-समुझावौं नित सब कौं, दुःखजोनि सब भोग।
पै मेरौ मन रम्यौ इनहि में, छाँडि कृष्न-संजोग॥
सोवत, रोवत, पढ़त, खात, खेलत बीत्यौ बहु काल।
धन-जन मान-बड़ा‌ई-हित नित चिंतातुर बेहाल॥
मानव-जन्म सुदुर्लभ हरि नै बड़ी दया करि दीन्हौ।
सो हौं प्रभुहि बिसारि, भोग-रत, पाप-निकेतन कीन्हौ॥
अब हे सहज दयानिधि! अपनौ बिरुद देखि अपना‌औ।
पाप-पंक सौं खींचि तुरत, निज चरननि माँझ बसा‌औ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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