नीकै रहियौ जसुमति भैया।
आवैगे दिन चारि पाँच मैं, हम हलधर दोउ मैया।।
नोई बेंत, बिषान, बाँसुरी, द्वार अबेर सबेरै।
लै जनि जाइ चुराइ राधिका, कछुक खिलौना मेरे।।
जा दिन तै हम तुमतै बिछुरे, कोउ न कहत कन्हैया।
उठि न सबेरे कियौ कलेऊ, साँझ न चापी धैया।।
कहिये कहा नद बाबा सौ, जितौ निठुर मन कीन्हौ।
'सूरदास' पहुँचाइ मधुपुरी, फेरि न सोधौ लीन्हौ।। 3436।।