नीकैं धरनि धरयौ गोपाल।
प्रलय घन जल बरषि सुरपति, परयौ चरन बिहाल।।
करत अस्तुति नारि-नर-ब्रज, नंद अरु सब ग्वाल।
जहाँ-तहाँ सहाइ हमकौं, होत हैं नँदलाल।।
जाहि पूजन डरत मन मैं, ताहि देख्यौ दीन।
त्रिदस-पति सब सुरनि नायक सो तुमहिं आधीन।।
देखि छबि अति नंद-सुत की, नारि, तन मन वारि।
सूर प्रभु कर तैं गोबर्धन, धरयौ धरनि उतारि।।960।।