नीकै स्याम मान तुम धारौ।
तुम बैठे दृढ़ मान ठानि, मैं मेट्यौ, मान तुम्हारौ।।
यह मन साध बहुत ही मेरै, तुम बिनु कौन निवारै।
नागरि पिय तनु अपनी सोभा, बारंबार निहारे।।
बेनी माँग, भाल वेदी छवि, नैननि अंजन रंग।
'सूर' निरखि पिय घूँघट की छबि, पुलकि न भावति अंग।।2153।।