नीकैं गाइ गुपालहिं मन रे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



नीकैं गाइ गुपालहिं मन रे।
जा गाए निर्भय पद पाए अपराधी अनगन रे।
गायौ गीध, अजामिल, गनिका, गायौ पारथ-धन रे।
गायौ स्‍वपच परम अघ-पूरन, सत पायौ बाम्‍हन रे।
गायौ ग्राह-ग्रस्‍त गज जल मैं खंभ बँधे तैं जन रे।
गाए सूर कौन नहिं उबन्‍यौ, हरि परिपालन पन रे।।66।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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