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श्रीकृष्णांक
प्रेम और सेवा के अवतार श्रीकृष्ण
वहाँ के निवासी लेन-देन करते है, क्रय-विक्रय करते है, चीजों को बटोर-बटोरकर रखते है, एक-दूसरे को प्यार करने के बदले धोखा देने की- ठगने की चेष्टा करते है, इसी से वहाँ दुःख ने घर कर लिया है। अतएव एक बार फिर आओ और सबको अपने प्रेम के प्रभाव से सन्मार्ग पर ले आओ तथा उनके हृदयों में प्रेम, सेवा और दान के भाव भर दो। सारे बालक-बालिकाओं के पथ-प्रदर्शक बनकर उन्हें सच्चे स्वार्थ-त्याग का मार्मिक पाठ पढाओ और सब प्राणियों की निःस्वार्थ सेवा के आनन्द से प्रफुल्लवदन होने की शिक्षा दो। स्त्रियों ऐसी शिक्षा दो किवे तुम्हे चाहने लगे और सब प्रकार की आसक्तियों को छोडकर तुम्हारे बताये हुए, सब प्राणियों की प्रेमयुक्त सेवा के आदर्श का अनुसरण करें। विविध सम्प्रदायों और जातियों के कारण विदीर्ण तथा अंधविश्वासों से विमोहित इस देश मे एक बार पुःन पधारों एवं इस प्रकार के अज्ञतापूर्ण बन्धनों के विरुद्ध प्रेमपूर्ण महान आन्दोलन के संचालक बनो और उसी सनातन सत्य का मार्ग स्थापित करो, जिससे यह विश्व पुनःपूर्ववत प्रेम, सुख शान्ति ओर समृद्धि से परिपूर्ण हो जाय[1]। ईश्वर करे, भारत माता के पुत्र और पुत्रियाँ अपने आचरणों से सारे विश्व को तुम्हारे प्रेम-मार्ग का उपदेश करें, जिससे स्वार्थपरता एवं अशान्ति से सन्तप्त जगत में पुनः सत्य शान्ति और सुख की स्थापना हो। कलह कलपना काम कलेस निवारनौ । नागरीदासजी
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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यस्मिन्हरिर्भगवानिज्यमान इज्यामूर्तिजतां शं तनोति।
कामनमोघांस्थिरजंगमानामंतर्बहिर्वायुरिवैष आत्मा॥(श्रीमद्भा.1।17।34)
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