निवाहौ बाहँ गहे की लाज।
द्रुपद सुता भाषति, नँदनंदन कठिन बनी है आज।
भीषम, द्रोन, करन, दुरजोधन, बैठे सभा विराज।
तिन देखत मेरौ पट काढ़त, लीक लगै तुम लाज।
खंभ फारि हरनाकुस मारयौ, जन प्रहलाद निवाज।
जनक-सुता-हित हत्यौ लंकपति, बाँध्यौ साइर-पाज।
गदगद स्वर, आतुर, तन पुलकित, नैननि नीर-समाज।
दुखित द्रौपदी जानि जगतपति, आए खगपति त्याज।
पूरे चीर भीरु तन कृष्ना, ताके भरे जहाज।
पूरे चीर भीरु तन कृष्ना, ताके भरे जहाज।
काढ़ि काढ़ि थाक्यौ दुस्सासन, हाथनि उपजी खाज।
बिकल मान खोयौ कौरवपति, पारेउ सिर को ताज।
मूरज प्रभु यह मान सदाई, भक्त-हेत महराज।।255।।