निरणि मुख राघव धरत न धोर -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
निरणि मुख राघव धरत न धोर।
भए अति अरुन, बिसाल कमल-दल-लोचन मोचत नीर।
बारह वरष नींद है साघी तातैं बिकल सरीर।
बोलत नहीं मौन कहा साध्यौ, बिपति-बँटावन बीर।
दसरथ-मरन, हरन सीता कौ, बैरिनि की भोर।
दूजौ सूर सुमित्रा-सुत बिनु, कोन घरावै धीर?॥145॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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