निरखति अंक स्याम सुंदर के बारबार लावति छाती।
लोचन जल कागद मसि मिलि कै ह्वै गइ स्याम स्याम जू की पाती।।
गोकुल बसत नंदनंदन के, कबहु बयारि न लागी ताती।
अरु हम उती कहा कहै ऊधौ, जब सुनि बेनु नाद सँग जाती।।
उनकै लाड़ वदति नहिं काहू, निसि दिन रसिक-रास-रस राती।
प्राननाथ तुम कवहि मिलौगे, 'सूरदास' प्रबु बाल सँघाती।। 3487।।