निपट बंकट छबि अटके -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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रूप राग


राग त्रिवेनी


निपट बँकट छबि अटके
मेरे नैना निपट० ।। टेक ।।
देखत रूप मदन मोहन को, पियत पियूख न मटके ।
बारिज भवाँ अलक टेढ़ी मनो, अति सुगंधरस अटके ।
टेढी कटि टेढी करि मुरली, टेढी पाग लर लटके ।
मीराँ प्रभु के रूप लुभानी, गिरधर नागर नटके ।।7।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. निपट = नितांत, सर्वथा। बँकट = वक्र, टेढ़े ( ‘त्रिभंगीलाल’ श्रीकृष्ण का विशेषण। ) छबि = सौंदर्य मे। अटके = उलझ गये, फँस गये। पियत = पी रहे हैं। पियूख = पीयूष, अमृत। मटके = फिरे, लौटे, चलायमान हुए। ( देखो - ‘कहा कहौं इन नैनिन की बात। ये अलि प्रिया बदन अम्बुज रस अटके अनत न जात’- हितहरिवंश; तथा ‘हरि मुख निरखत नैन भुलाने। ये मधुकर रुचि पंकज लोभी, ताही ते न उड़ाने’ - सूरदास; अथवा ‘दृग दीजिए दीसि परौ जिनसों, इन मोर पखौवनि को भटके। मनु दै फिरि लीजिए आपनहिं, जुतहीं अटकै न कहूँ मटकै, - घनानन्द )। वारिज...अटके = कमल सी भौंह और टेढ़ी केशपाश की सुगुधों द्वारा आकृष्ट होकर उनमें मानो उलझ से गये हैं। करि = हाथ में। लर = मोतियों की लड़ पर। लटके = लुब्ध वा लट्टू हो गये। नटके = नटवर श्रीकृष्ण के। ( देखो - रूप सबै हरि वा नटको, हियरे फटक्यो भटक्यो अँटक्यो री’ - रसखान )।

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