निपट छोटे कान्ह सुनि जननी कहौ बात।
होत जब समुदाइ करत तब सिसु भाइ एकातहिं पाइ कै नैन भरि मुसुकात।।
देखि रसरीति की प्रीति विपरीति गति मति मानि छाँड़ि सँग लगी रहौ निसि प्रात।
जात नहिं बिसरि देखे बहुत जतन धरि समुझि कहुँ चद देखै कमल विगसात।।
दुरत घूँघर जबै बाल जसुमति हृदै उझकि धँसि धरनि धरि पाँव मुख किलकात।
मनहुँ आषाढ़ घन बादरी ‘सूर’ तजि होत आनंद सब फूल अति जलजात।। 45 ।।