निद्रा

निद्रा योगदर्शन के अनुसार जाग्रत अवस्था से स्वप्न अवस्था में जाने का नाम है, किन्तु यह एक स्थूल शारीरिक क्रिया है। मन इससें क्रियाशील बना रहता है और चेतना से शून्य नही होता है।[1]

  • जिसे हम 'निद्रा' कहते हैं, उसमें भी एक क्षण निद्रा रहती है और दूसरे क्षण जागृति।[2]
  • निद्रा के समय जब हम स्वप्न की अवस्था में जाते है तो वो स्वप्न निद्रा की स्थिती से बाहर आते ही समाप्त हो जाता है।
  • उत्तम स्वास्थय के लिये यह अति आवश्यक है। निद्रा करने से आँखों को आराम मिलता है। निद्रा की स्थिती में मनुष्य के दिमाग से सब निकल जाता है और वो स्वप्न की अवस्था में खो जाता है।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 367 |
  2. भागवत धर्म सार -विनोबा पृ. 134

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