ना जानौ तभी तै मोकौ, स्याम कहा धौं कीन्हौ री।
मेरी दृष्टि परे जा दिन तै, ज्ञान ध्यान हरि लीन्हौ री।।
द्वारै आइ गए औचक ही मै आँगन ही ठाढ़ी री।
मनमोहन मुख देखि रही तब, कामाविथा तनु बाढ़ी री।।
नैन सैन दै दै हरि मो तन कछु इक भाव बतायौ री।
पीतांबर उपरैना कर गहि, अपनै सोस फिरायौ री।।
लोकलाज, गुरुजन की संका, कहत आवै बानी री।
'सूर' स्याम मेरै आँगन आए, जात बहुत पछितानी री।।1875।।