श्रीनारायणीयम्
एकनवतितमदशकम्
अयि भगवान्! ऐसी कृपा कीजिए कि मैं श्रेयः प्राप्ति के साधनों में एकमात्र भक्तिमार्ग में ही अधिक श्रद्धालु होकर बारंबार आपके अवतारों, तज्जन्य लीलाओं, नामों तथा पुरुषार्थपूर्ण कार्यों का गान करता रहूँ और इस प्रकार आपके जन्म कर्म के कीर्तन तथा मंगलमय नामों के कीर्तन- दोनों के प्रभाव से शीघ्र ही द्रवीभूत होकर कभी खिलखिलाकर हँसता, कभी रोता, कभी उच्च स्वर से गरजता, कभी गाता और कभी उन्मादी की तरह नृत्य करता हुआ लोकातीत स्थिति में पहुँचकर विचरण करूँ।।5।।
भुवनेश्वर! इन पाँचों भूतों को, भूतात्मक सकल चराचर जगत् को, पक्षी, मत्स्य, मृग आदि समस्त जल-स्थलनिवासी जीवों को, मित्रों, शत्रुओं और उदासीनों को ‘ये सब श्रीहरि के स्वरूप हैं’- यों अनुभव करता हुआ मैं अनन्यभाव से उन्हें नमस्कार करूँ। आपकी ऐसी सेवा संपन्न होने पर आपकी कृपा अवश्य ही प्राप्त होगी। उस कृपा के प्रभाव से मेरी सुदृढ़ भक्ति, विषयविरक्ति तथा आपके तत्त्व का सम्यक् ज्ञान- ये तीनों बिना विभिन्न प्रयासों के ही सिद्ध हो जाएंगे।।6।। |
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