श्रीनारायणीयम्
षष्ठदशकम्
चक्रधर! यह संसारचक्र आपकी क्रियाएँ हैं, महान असुरों का समुदाय आपका वीर्य है, पर्वत आपके अस्थि समूह हैं, नदियों का समुदाय नाडियाँ हैं और वृक्ष रोएँ हैं। ईश! आपके ऐसे अनिर्वचनीय शरीर की जय हो।।9।।
गुरुवायुपुरनाथ! आपका ऐसा विराट् रूप साधन भक्ति के अधिकारी साधकों के षोडशोप चारपूर्वक पूजनरूप कर्म की समाप्ति के समय स्मरण (ध्यान) करने योग्य कहा जाता है। आप इस विराट् के अंतर्यामीरूप तथा शुद्ध सत्त्वमय स्वरूप वाले हैं, आपको नमस्कार है। आप मेरे रोगो का नाश कर दीजिए।।10।। |
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