श्रीनारायणीयम्
षष्टितमदशकम्
उस समय व्रत की समाप्ति के दिन अपने वस्त्र उतार नदी के किनारे रखकर यमुना-जल में स्नान के लिए प्रविष्ट हुईं वे गोप-किशोरियाँ जलक्रीड़ा में संलग्न हो गयीं। इतने ही में आपको सामने उपस्थित देख वे सब की सब बहुत लज्जित हुईं।।4।।
लज्जा से उन सभी गोपकुमारियों के मुख नीचे को झुक गये। इसी समय पास ही रखे हुए उनके वस्त्र-समूह को लेकर आप बड़े वेग से वृक्ष की शाखा पर जा चढ़े।।5।।
और बोले- ‘सुलोचनाओं! पहले एक-एक करके यहाँ मेरे पास आओ और यथावत् रूप से अपने-अपने वस्त्र को पहचानकर ले जाओ।’ परिहासपूर्ण मृदुभाषा में ऐसा कहकर आप मुस्कराये। यह देख वे नववधुएँ (गोपकुमारियाँ) अत्यंत मुग्ध हो गयीं।।6।। |
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