श्रीनारायणीयम्
अष्टपञ्चाशत्तमदशकम्
वसुदेवनन्दन! तदनन्तर आपने अपने सखाओं के साथ दूर तक पता लगाकर देखा कि पशुओं का समूह मार्गभ्रष्ट होकर मुञ्जारण्य में जाकर अत्यंत क्लेश उठा रहा है। यह देख उन गौओं को शीघ्र लौटा लाने के लिए आप ज्यों ही निकट गये, त्यों ही, हाय-हाय! सब ओर दावानल फैल गया।।3।।
सारी दिशाएँ प्रज्वलित हो उठीं। घोर भांकाररव से युक्त आग बड़ी भयानक प्रतीत होने लगी। उसमें मार्ग भूल जाने के कारण आपके सखा और गौएँ अधजली सी होकर आर्तनाद करन लगीं। ‘अहह, भुवनबन्धो! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए’- ऐसा कहते हुए वे सब के सब एकमात्र तापहारी आप भगवान् की शरण में गये।।4।। |
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