श्रीनारायणीयम्
सप्तचत्वारिंशत्तमदशकम्
तब बड़े वेग से मटके से बाहर निकलते हुए दही के शब्दों को सुनकर माता यशोदा बड़ी उतावली में दौड़कर वहाँ आयीं तो देखा कि आपके यशोविस्तार की भाँति सारा दही तुरंत ही धरती पर बिखर गया है।।4।।
तदनन्तर मुनिगण वेदमार्ग का अनुसरण करके जिनका परिमार्गण करते रहते हैं, (परंतु आप दृष्टिगोचर नहीं होते) उन्हीं आपको वहाँ न देखकर यशोदा क्रुद्ध होकर आपका अन्वेषण करने लगीं। तब उस पुण्यशालिनी ने देखा कि आप ओखली पर चढ़कर छीके पर रखा हुआ माखन बिलावों को लुटा रहे हैं।।5।।
तब क्रोध के कारण रूखे मुख वाली यशोदा ने भय की भावना से जिसके मुखकमल की विलक्षण झाँकी हो रही थी, ऐसे आपको शीघ्र ही पकड़कर सखियों के सामने ही बाँधने के लिए रस्सी हाथ में ली।।6।। |
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