श्रीनारायणीयम्
चत्वारिंशत्तमदशकम्
उसी अवसर पर नन्द की अनुपस्थिति के समय एक सुंदर स्वरूप वाली युवती व्रज में आयी। उसके सुसज्जित केश पाश पर भौंरे मँडरा रहे थे। माया से शिशुरूप धारण करने वाले भगवन्! वह आपके निकट गयी।।4।।
वह राक्षस कुल में उत्पन्न हुई बालघातिनी पूतना थी। उसे देखकर व्रज-युवतियाँ क्षण भर तक यों विचार करती रहीं कि ‘यह कौन है?’ तब तक उसने आपको उठा लिया।।5।।
ललित हाव-भाव के विलास से जिनका मन अपहृत हो चुका था, वे युवतियाँ उसे रोकने में समर्थ न हुईं। तब पूतना ने भवन के भीतर बैठकर मायामूर्तिधारी आपके मुख में अपना स्तन दे दिया।।6।। |
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