श्रीनारायणीयम्
सप्तत्रिंशत्तमदशकम्
(जब कंस घर लौट गया,) तब आपकी ही प्रेरणा से नारदमुनि भोजराज कंस के पास जाकर उससे बोले- ‘प्रभो! क्या आप नहीं जानते हैं कि आप लोग असुर हैं और ये यदुवंशी देवता हैं? वे मायावी श्रीहरि देवताओं की प्रार्थना से आप लोगों के वधार्थ (यदुवंश में) उत्पन्न होने वाले है।’ ऐसा सुनकर कंस ने यादवों को स्थानच्युत कर दिया और वसुदेव जी के पुत्रों को मार डाला।।9।।
माधव! जब देवकी के सातवें गर्भ में नागराज अनन्त प्राप्त हुए, तब आपकी प्रेरणा से माया ने उन्हें रोहिणी के उदर में पहुँचा दिया। तत्पश्चात् सच्चिदानन्द स्वरूप आप भी देवकी के गर्भ में प्रविष्ट हुए। विभो! उस समय देवगण आपकी स्तुति कर रहे थे। कृष्ण! वही आप मेरे रोग समूहों का विनाश करके पराभक्ति प्रदान कीजिए।।10।। ।।इति श्रीकृष्णावतारप्रसंग वर्णन सप्तत्रिंशत्तम दशकं समाप्तम्।। |
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