श्रीनारायणीयम्
चतुर्थदशकम्
अयि विश्वनायक! उस ब्रह्म का समास्वादन- सम्यगनुभव ही जिसका स्वरूप है ऐसी स्थिति आपकी समाधि है। उस समाधि के आश्रित हुए हम उस स्थान से च्युत होने पर पुनः धारणा आदि का आरंभ करेंगे।।7।।
प्रभो! उपर्युक्त प्रकार से धारणा-ध्यान समाधि के अभ्यास द्वारा प्रचुर रूप से आविर्भूत हुए आपके स्वरूपपरब्रह्मानुभवजनित आनन्द से निर्वृत्त उत्सव वाले तथा जीवन्मुक्तों एवं भक्तसमूहों के शिरोमणि होकर हम शुकदेव नारद आदि की भाँति विचरण करेंगे।।8।।
अज! आप में समाधि के दृढ़ हो जाने पर, चाहे कोई सद्योमुक्ति का अभिलाषी हो अथवा क्रममुक्ति का, ये दोनों ही प्रकार के साधक प्राणायाम के द्वारा वशीभूत हुए प्राणवायु को षट्चक्रों के सहारे सुषुम्णा नाड़ी द्वारा धीरे-धीरे ऊपर को ले जाते हैं।।9।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज