श्रीनारायणीयम्
पञ्चत्रिंशत्तमदशकम्
तत्पश्चात् आपका वृत्तान्त सुनने से जिसके पंख निकल आये थे, उस अतिशय वेगपूर्वक उड़ने वाले सम्पाती के कहने से जिसने समुद्र को पार किया और नगरी के भीतर घुसकर जानकी का दर्शन करके उन्हें अँगूठी प्रदान की, अशोक-वाटिका को नष्ट-भ्रष्ट किया, रण में अक्षकुमार का कचूमर निकाला तथा ब्रह्मास्त्र का बन्धन स्वीकार किया, उस हनुमान ने रावण को देखकर और लंका को जलाकर तहस-नहस करके शीघ्र ही लौटकर आपको चूड़ामणि समर्पित की।।3।।
तब आप सुग्रीव-अंगद आदि प्रबल वानरों की महती सेना से भूमितल को आक्रान्त करते हुए वहाँ से चलकर समुद्र के तट पर आये। वहाँ राक्षसराज रावण का छोटा बाई विभीषण आपकी शरण में आया और एकान्त में उसने आपको शत्रु का वृत्तान्त कह सुनाया। तब समुद्र से प्रार्थना करने पर अपनी प्रार्थना के विफल होने के कारण क्रुद्ध होकर आपने आग्नेयास्त्र का प्रयोग किया। उसके तेज से भयभीत होकर समुद्र प्रकट हुआ। तब उसके कथनानुसार आपको समुद्र के मध्य से मार्ग प्राप्त हुआ।।4।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज