श्रीनारायणीयम्
द्वितीयदशकम्
अत्यंत परिश्रमसाध्य कर्मसमूहों का अनुष्ठान करने से जिनके राग-द्वेषादि मल नष्ट हो गये हैं ऐसे कुछ लोग ज्ञानमार्ग अथवा भक्ति मार्ग में अधिकार प्राप्त कर पाते हैं तथा अन्य कुछ लोग रागरहित हुए बिना वेदान्तमार्ग में परम कष्ट सहन करके आपके ब्रह्मस्वरूप की चिन्तना करते हैं। तत्पश्चात् अनेकों जन्मों के बाद उन्हें फल की सिद्धि होती है; परंतु हम भक्ति मार्गियों के लिए इससे क्या प्रयोजन है अर्थात कुछ भी नहीं ।।9।।
अयि विभो! जो आपके कथा रसरूपी अमृत द्रव में निरन्तर मज्जन करने से स्वयं सिद्ध होने वाली, अनायास ही निर्मल ब्रह्मज्ञान के मार्ग का विस्तार करने वाली तथा तुरंत ही सिद्धि प्रदान करने वाली है, आपकी वह भक्ति (कर्ममय तथा ज्ञानमय- इन दोनों योगों से) उत्कृष्ट हो रही है। अतः वातालयाधीश्वर! मेरे लिए आपके चरणकमलों में अनपायिनी प्रीतिरूपी रस से आर्द्र हुई वह भक्ति ही शीघ्र सिद्ध हो ।।10।। |
संबंधित लेख
क्रमांक | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज